Gulzar shayari

Gulzar ji ke india or india se bhar bhi bhoht chahne wale kyoki gulzar ji kalikha ak ak sabad apne aander hajaro jajbaat chupa k rakhta hai agar gulzar ji ak line bhi likhte hai to usme usme ak puri story hoti hai yahi hai unki kalam ki takat jiska mai apne sabdon me kitna bhi gungan kyona karu kam hai yaha mai apke liyegulzar ji ki likhi kuch behtri shayri leker aaya hu kyoki aap akshar dhudhte hai best shayri of gulzar in hindi par apko ab dhudne ki jaroorat nahi hai yha mai un sabka collaction laya hu


Best Gulzar shayari 

आँखों से #आँसुओं के #मरासिम #पुराने हैं

मेहमाँ ये #घर में #आएँ तो #चुभता नहीं #धुआँ

आप #के #बाद हर #घड़ी हम ने

आप #के #साथ ही #गुज़ारी है

दिन #कुछ #ऐसे #गुज़ारता है #कोई

जैसे #एहसान #उतारता है #कोई

आइना #देख कर #तसल्ली #हुई

हम #को #इस #घर में #जानता है #कोई

ज़मीं #सा #दूसरा #कोई #सख़ी #कहाँ #होगा

ज़रा सा #बीज #उठा ले तो #पेड़ देती है


आँखों से #आँसुओं के #मरासिम #पुराने हैं

मेहमाँ ये #घर में #आएँ तो #चुभता नहीं #धुआँ

#काँच के #पीछे #चाँद भी था और #काँच के ऊपर काई भी

#तीनों थे #हम वो भी थे और मैं भी था #तन्हाई भी

तुम्हारी #ख़ुश्क सी #आँखें #भली नहीं #लगतीं

वो #सारी #चीज़ें जो #तुम को #रुलाएँ, #भेजी हैं

खुली #किताब के सफ़्हे #उलटते #रहते हैं

#हवा चले न #चले दिन #पलटते रहते है

#शाम से #आँख में #नमी सी है

आज #फिर आप की #कमी सी है

वो #उम्र #कम कर #रहा था मेरी

मैं #साल अपने #बढ़ा रहा #था

कल का #हर #वाक़िआ #तुम्हारा था

आज की #दास्ताँ #हमारी है

काई सी #जम गई है #आँखों पर

सारा #मंज़र हरा सा #रहता है

उठाए फिरते थे #एहसान जिस्म #का जाँ पर

चले #जहाँ से तो ये #पैरहन उतार चले

#सहर न आई कई बार #नींद से #जागे

थी #रात रात की ये #ज़िंदगी #गुज़ार चले

यूँ भी #इक #बार तो #होता कि #समुंदर बहता

कोई #एहसास तो #दरिया की #अना #का #होता

कोई न कोई #रहबर #रस्ता काट #गया

जब भी #अपनी रह चलने की #कोशिश की


आँखों से #आँसुओं के #मरासिम #पुराने हैं

मेहमाँ ये #घर में #आएँ तो #चुभता नहीं #धुआँ

gulzar shayari

कितनी #लम्बी #ख़ामोशी से #गुज़रा हूँ

उन से #कितना #कुछ कहने की #कोशिश की

best gulzar shayari

कोई #अटका #हुआ है #पल शायद

#वक़्त में पड़ गया है #बल शायद

top gulzar shayari

आ #रही है जो चाप #क़दमों की

#खिल रहे हैं कहीं #कँवल शायद